माँ-पापा की लाडली बेटी हूँ लेखनी प्रतियोगिता -27-Apr-2023
माँ-पापा की लाडली बेटी हूँ
ममता के आँचल में पली-बढ़ी
हरदम माँ की गोद में लेटी हूँ
ज़मीं पर नहीं रखने पाँव मेरे
मैं पापा के कंधों पर बैठी हूँ
मुझमें है सबकी जान बसती
घर में मैं सबकी चहेती हूँ
किसी पहचान की मोहताज नहीं
माँ-पापा की लाडली बेटी हूँ
कोई बुलाता लाडो कह कर
कोई कहे पीहू सी लगती हूँ
मंत्रमुग्ध हो जाते हैं घर वाले
जब तोतली जुबाँ में चहकती हूँ
गुड्डे-गुड़ियों का खेल खेलते
कभी माँ की साड़ी लपेटी हूँ
पापा सा कभी करती तो लगता
सारी दुनिया मुट्ठी में समेटी हूँ
पहन लेती चश्मा दादी का
सब पर हुकुम चलाती हूँ
छड़ी पकड़कर ऐसे चलती
जैसे खुद दादी बन जाती हूँ
घर भर में हूँ बड़ी सयानी
पर उम्र में अभी मैं छोटी हूँ
पूरा घर सर पर उठा लेती
जब भी कभी मैं रोती हूँ
दादी-नानी की कहानी सुनकर
खुद को परी समझ लेती हूँ
मैं अलबेली मैं चुलबुली
माँ-पापा की लाडली बेटी हूँ
- आशीष कुमार
मोहनिया, कैमूर, बिहार
Abhinav ji
28-Apr-2023 08:56 AM
Very nice 👍
Reply
Ashish Kumar
28-Apr-2023 07:38 PM
Thank you so much 😊😊🙏🙏
Reply
kashish
27-Apr-2023 09:12 PM
very nice
Reply
Ashish Kumar
27-Apr-2023 10:46 PM
Thank you so much 😊😊🙏🙏
Reply